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Saturday, May 9, 2020

आत्म बोध - बुद्धपूर्णिमा पर विशेष

"बुद्धं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि"

बुद्ध धर्म के रचतेया महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व  इश्वाकु वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ । जहाँ उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया इसके साथ साथ गौतम गोत्र में होने के कारण वह गौतम भी कहलाये। बाल अवस्था में ही उनकी माँ महामाया का निधन हो गया। सिद्धार्थ के नामकरण के दौरान एक पुरोहित ने उनके बारे में भविष्यवाणी करते हुए कहा , यह बालक एक या तो राजा बनेगा  या फिर एक पवित्र पथ  पर चलकर संसार का मार्गदर्शक करेगा।



गौतम बाल अवस्था से ही बड़े दयालु और शांत व्यक्तित्व के थे उन्हें राज महल  की गतिविधिों में बिलकुल भी रूचि नहीं थी । कुछ वर्ष उपरांत उनका विवाह यशोधरा से किया गया ।अपने विवाह के कुछ वर्षो बाद गौतम का मन वैराग्य में चला गया और अपनी पत्नी और पुत्र राहुल को छोड़कर वो ज्ञान की खोज के लिए वन में चले गए।

गौतम कब विरक्ति की ओर निकल पड़े ये उन्हें भी नहीं पता चला। एक बार की बात है जब गौतम अपने महल से बाहार घूमने के लिए निकले जहाँ रस्ते में उन्हें एक वृद्ध आदमी मिला जो चल पाने में असमर्थ था । कुछ समय बाद उन्हें एक रोगी मिला , जिसका शरीर दूसरे के सहारे चल रहा था। उसके बाद सिद्धार्थ को किसी की शव यात्रा निकलती दिखाई दी जिसके दृश्य ने उन्हें झकजोर कर रख दिया । जब वह आगे गए तो उन्हें एक सन्यासी मिला जिसने जीवन की सभी विरक्तियॉं को त्यागा हुआ था अतः उस संस्यासी ने बुद्ध को इतना प्रभावित किया जिससे सिद्धार्थ ने वन में जाकर कठोर तपस्या करने का निश्चय किआ और कुछ वर्षो बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई , जिस वृक्ष की छाया के नीचे गौतम तपस्या किया करते थे आज वो वृक्ष बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है और वो बुद्ध कहलाये गए ।

गौतम बुद्ध के अनुसार जीवन बहुत उतर चढ़ाव बड़ा होता है मंज़िल उसी को मिलती है तो निरंतर प्रयास करता रहता है। नीचे दिए हुए विशेष विचार जिससे गौतम बुद्ध महात्मा बुद्ध कहे जाने लगे।

१- बुद्ध कहते है अगर बुराई नहीं रहेगी तो अच्छाई उस पर अपनी चाप कैसे छोड़ पायेगी ।

२- अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग - गौतम बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को ही माध्यम मार्ग कहा , अष्टांगिक का अर्थ है ८ टांगों वाला मार्ग , ऐसा सफर जिसपर चलने कलिए हमेशा ८ बातों को ध्यान में रखा जाता है और वे हैं सम्यक दृष्टि , सम्यक वचन , सम्यक काम , सम्यक आजीव , सम्यक व्यायाम , सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। सिद्धार्थ का कहना था हमेशा बीच का रास्ता अपनाना चाइये जिससे किसी को भी ठेस नहीं पहुँचती ।

३- बुद्ध कहते हैं हमारा मैं बड़ा चंचल है हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते हैं।

४- क्रोध किसी का सगा नहीं हुआ इंसान हमेशा अपने क्रोध के कारण ही अपमानित होता है।

५- वर्तमान में जो हो रहा है सिर्फ उसी में ध्यान रखो।

६- स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है।

७- शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है ।

बुद्ध के महापरित्याग के बाद उनके द्वारा दिए हुए विचार ही आज संसार में बौद्ध भिक्षओं द्वारा फैलाये जा रहे हैं। वो बुद्ध के ही विचार थे जिसे सुनकर सम्राट अशोक ने कलिंगा में हुए नरसंघार के बाद बुद्ध धर्म अपनाया और इसकी स्थापना की और उनके विचार संसार के कोने कोने तक फैलाये जाने का निश्चय किया।