Wednesday, May 27, 2020

गुरुग्राम से दरभंगा-ज्योति की ज्योति

हौसले उम्र के मोहताज नहीं होते बस कुछ कारण वर्ष छुप जाते हैं। ज़रूरत होती है तो सिर्फ किसी घटना की जब इंसान के अंदर छुपी उसकी क़ाबलियत लोगो के लिए प्रेरणा बनकर बाहर आती है। आज ज्योति को सही मायनो में उसकी सही पहचान मिली है। ये कहानी है भारत की साइकिल गर्ल ज्योति की। लॉकडाउन में लोगो के पलायन की वजा से कोरोना संक्रमण का खतरा और बड़ा वही सरकार भी मुस्तैद हुई। शार्मिक ट्रेंस चलायी गयी लोगो को अपने अपने गंतव्यों पर पहुंचाया गया। दूसरी और एक लड़की जिसने अपने बीमार बाप को १२०० कम की दुरी तेह कर गुरुग्राम से दरभंगा तक साइकिल पर बेखौफ होकर ले आयी वो तारीफ के काबिल है। दरभंगा की रहने वाली लड़की ज्योति ये सुनिश्तित किया के हौसला उम्र देखकर नहीं आता महज़ १५ साल की उम्र में उसने ये कारनामा कर न सिर्फ हिंदुस्तान में अपना नाम कमाया बल्कि सुपर पावर अमेरिका के राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रम्प तक को अपने कारनामे पर ट्वीट करने पर मजबूर कर दिया |

इवांका , ज्योति और उसके पिता के संग फोटो को ट्वीट करते हुए लिखती हैं १५ साल की मुकर अपने बीमार बाप को १२००कम की दुरी तेह कर अपने घर लायी जिससे भारत के लोग तो प्रेरित हुए ही हैं साथ ही साथ साइकिल फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने भी ज्योति को दिल्ली आने का बुलावा दिए ताकि वो अपने इस हौसले से और प्रेरित करें। "हार तेरे गिरने मैं तेरी हार नहीं, तू इंसान है कोई अवतार नहीं, गिर, उठ, चल, दौड़ फिर भाग, क्योंकि जिंदगी संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं ।"

Monday, May 25, 2020

गंगाजल-क्या लोगो को कोरोना से लड़ने में मदद करेगा।

बरसों से धरती पर पाप नाशनी भागीरथी जिसे हम गंगा भी कहते हैं उसका जल किसी चमत्कारी औषधि से कम नहीं है.हाल में किया गया दावा जो यह कहता है के गंगा का जल एक नेचुरल हैंड सांइटिज़ेर या फिर कोरोना की वैक्सीन बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है .वैज्ञानिक शोध के अनुसार गंगा के जल में ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जिससे उसका जल कभी सड़ता नहीं है. शोध में ये भी माना गया है के गंगा नदी में जो खूबियां है वो किसी और नदी मे नहीं है.क्यूंकि कहा जाता है जब गंगा हिमालय के गोमुख से होकर गुज़रती है तो अपने साथ ओषधियों के उद्धरण भी लेकर गुज़रती है।

गंगाजल में सिर्फ यही नहीं बहुत से किस्म के शोध भी हुए हैं जैसे रेडियोलॉजिकल टेस्ट , माइक्रोबायोलोजिकल टेस्ट , बायोलॉजिकल टेस्ट।गंगाजल के जीवाणु जैसे एस्केरेशिआ, एन्टेरोबेक्टर, साल्मोनेला , शिगेला और विब्रिओ। ये जीवाणु कुछ हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है और कुछ नुकसानदायी मगर इस शोध में आगे ये भी पता चला गंगा के पानी में इन जीवाणु के इलावा ११०० किसम के बक्टेरिओफैज़ पाए जाते है जो इसे अमृत बनाते है। ये बक्टेरिओफैज़ ऐसे जीवाणु को कहते हैं जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद नहीं है। इसी के तहत गंगा का जल ऐसी बीमारियों के उपयोग में लाया जा सकता है जो बैक्टीरिया से उत्पन होती है।


सवाल ये है क्या गंगा का जल कोरोना के वैक्सीन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। क्यूंकि कोरोना बीमारी बैक्टीरिया से उत्पन हुई बीमारी नहीं है बल्कि ये वायरस से उत्पन हुई बीमारी है। फ़िलहाल ICMR को एक पत्र द्वारा इसके जल की फिर से शोध करने की अपील की गयी है।

Friday, May 22, 2020

अश्वगंधा - क्या कोरोना की काट बन सकती है ?

आज पूरी दुनिया कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए दिन रात जुटी हुई है। लगभग १००-२०० से ज़्यादा मेडिसिन्स के ऊपर शोध चल रहा है। कुछ तो ट्रायल के पहले फेज पर हैं कुछ का क्लीनिकल ट्रायल का आखिरी चरण है। इसी दौरान भारत के वैज्ञानिको की नज़र इसकी सबसे प्राचीन चिकित्सा "आयुर्वेदः" पर पड़ी है। सदियों पुराने इस चिकित्सा का माना जाता है की हर बीमारी से लड़ने में यह सक्षम है। आज जब कोरोना जैसी घातक महामारी का सटीक इलाज अभी मिलता नज़र नहीं आ रहा है वहीं आयुर्वेदः में औषदि गुणों की खान कहे जाने वाली जड़ी बूटी "अश्वगंधा" पर दिल्ली और जापान की नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी ने इस पर एक शोध किया है।

इस शोध में ये पाया गया है की अश्वगंधा में एक पदार्थ पाया जाता है जिसका नाम है "Withanone" ये पदार्थ कोरोना के रेप्लिकेशन को रोक सकता है। कोरोना वायरस की जब शोध हुई तो उसमें पाया गया की यह एक ऐसा वायरस है जो इंसान के शरीर में जाकर अपने आप को क्लोनिंग करता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। मिनिस्ट्री ऑफ़ आयुष और CSIR ने कहा है अश्वगंधा के साथ कुछ और आयुर्वेदः की दवाओं को उपयोग कर इस पर क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति जल्द ही मिलेगी।

आयुर्वेदः में कहना है अश्वगंधा के कई फायदे हैं जैसे ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल , ब्लड प्रेशर को कम करना , मांसपेशियों क ताकत देना, ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है । मगर इस बार देखना ये होगा जब आयुर्वेदः और आधुनिक विज्ञान का संगम मिलकर ऐसा कुछ मुकाम हासिल कर सकते है जिससे ये महामारी का संकट दूर हो सके।

Monday, May 18, 2020

हर जन की आवाज़ लोकल को वोकल बनाये - स्वदेशी को ही रोज़मर्रा में लाएं


कोरोना संकट में जब हर देश इस बीमारी से लड़ने में लगे हुए है। वहीं भारत की कोशिश है पूरी दुनिया में वो अपनी उपलब्धियों का परचम लहराए किस तरह स्वदेशी ही दुनिया में विस्तार से फैले और इससे ये सिद्ध हो सके जो मेक इन इंडिया है वही सर्वश्रेष्ठ है। इस महामारी ने हमें खुद के हुनर को पहचानने का मौका दिया है , हम क्या क्या कर सकते है ये खोयी हुई पहचान बनाने का मौका दिया है ताकि दुनिया भर में हम सीना ठोक कर कह सके के हम किसी से कम नहीं।
जब संकट आता है तो भारत की विभिन्ता कैसे एकता में बदलती है और एक नया इतिहास रचती है इसका इतिहास गवा है। १९६२ में जब इंडिया चीन का युद्ध हुआ तो इंडिया आर्थिक रूप से कमज़ोर हो गया और भारत में भयंकर भुखमरी हुई । १९६५ में जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो कुछ समय बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो अमेरिका के राष्ट्रपति ने शास्त्री जी से कहा के वो युद्ध बन करवा दें नहीं तो गेंहू का निर्यात बंद हो जायेगा तो शास्त्री अपनी बात पर अडिग रहे उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति की नहीं सुनी और कहने लगे के अगर गेंहू का निर्यात बंद होता है तो हो जाये। उसके बाद जब लाल बहादुर शास्त्री ने अपील की भारत की जनता से सब एक दिन का उपवास कीजिये और कृषि क्षेत्र में आतम निर्भर हो जाएं तो पूरा देश ने उनके शब्द सर माथे लिए और एक वो मंजर आया जब भारत गेंहू का सबसे बड़ा सप्लायर बना।

आज भी वही समय है एक बार फिर भारत इस आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र रहा है एक समय था जब भारत ने कोरोना में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल प्रोडक्ट्स जैसे वेंटिलेटर्स ,PPE किट, N95 मास्क बाहर से आयत किये मगर जब वही उपकरण बेकार निकले तो भारत ने ठान लिया ज़रूरत पड़ी है तो इसे हमें खुद ही इन्हें तैयार करना है और आज भारत ने ऐसे वेंटिलेटर्स बनाये है जिसकी गुंडवत्ता का कोई जवाब नही। मात्र १० दिन में त्यार की गयी टेस्टिंग किट ने तो पूरे विश्व में भारत को चर्चा का विषय बना दिया । बस अब यही लक्ष्य है जो पिछले ७० सालो से जिसकी आदत यह लग चुकी थी उसे अब दूर हटाकर अपना वर्चस्व कायम कर दुनिया को दिखाना है जो स्वदेशी है वही सटीक है।

Wednesday, May 13, 2020

आत्म निर्भर होगा भारत

कहते हैं हर संकट हमेशा अच्छी सीख देकर जाता है ।क्यूंकि संकट में एक अवसर है बदलाव का। कोरोना वायरस आज पूरे देश में एक ज़हर की तरह घुल रहा है । भारत समेत अनेक विकसित देश भी इसकी चपेट में है , न जाने कितने ही लोग इससे अब तक संक्रमित है और कितने ही इससे अपनी जान गवा बैठे हैं। आज अर्थव्यवस्था पूरी तरह डगमगा चुकी है मगर भारत में ये संकट उसके लिए एक सुनेहरा अवसर लेकर आया है । जिससे भारत एक बेहतर अर्थव्यव्स्थित देश ही नहीं बनेगा बल्कि आत्म निर्भर होकर समूचे विश्व के लिए एक मिसाल भी पेश करेगा।

भारत द्वारा इस संकट की घडी में सही वक़्त पर लिए गए निर्णय, उसकी कार्यशैली पर निसंदेह आज पूरी दुनिया की नज़रें है क्यूंकि भारत जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है मगर जिस ढंग से कोरोना को कण्ट्रोल किये हुए है वो सराहनीये है । आज बड़ी बड़ी सर्वे कम्पनीज जब विश्व का कोरोना संकट से उसकी मैनेजमेंट का सर्वे करती हैं तो भारत को पहले पायदान पर पाती है। चाहे मरकज़ हो या फिर मज़दूरों का पलायन इन सभी कमज़ोर कर देने वाली घटनाओ के आगे भी भारत ने अपने घुटने नहीं टेके बल्कि और भी मज़बूती से काम करता गया ।
make in india


"वसुदेव कुटुंबकम " की परिभाषा भी भारत ने इस संकट में सिद्ध करके दिखाई है । जिस तरह भारत ने अपने पडोसी देशों को जो मेडिसिन मदद भेजी है ,उससे भारत के आगे सभी विकसित देश नतमस्तक हैं। कोरोना के जन्मदाता से धोखा खाने के बाद विकसित देशों की कम्पनीज आज भारत में निवेश करने के लिए उत्साहित हैं । आज भारत में उसके इसी आत्म बल पर PPE किट हो, वेंटिलेटर्स हो , मास्क हो, सेनिटाइज़र्स हो इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। यही नहीं भारत कोरोना की वैक्सीन बनाने के भी करीब है । भारत की युवा शक्ति ये हौसला दिलाती है के भारत आत्म निर्भर बनेगा और आने वाले कुछ वर्षो में भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल शब्द आज भारत को इसी संकल्प के साथ इस महामारी से लड़ने का हौसला दे रहे हैं -

"जागो उठो और तब तक मत रुको 
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये"

Monday, May 11, 2020

अर्थ इस रिचार्जिंग

कोरोना के कहर से पूरा विश्व देहल रहा है वहीं धरती अब फिर से मुस्कुराने लगी है प्रकति एक अनोखे ही अंदाज़ में अपने जलवे दिखला रही है । कोरोना काल से कुछ वर्ष पूर्व की बात ही करें तो हम पाएंगे की कैसे इंसान प्रकर्ति का दुश्मन बना हुआ था। लगातार हो रही वृक्षों की कटाई ,हवा में ज़हर घोलता प्रदूषण ये काफी नहीं प्रकर्ति की तबाही के लिए।



इंसान भूल गया है जिस बेइन्ताह वो प्रकर्ति से खिलवाड़ कर रहा है इससे न सिर्फ खुद के लिए पतन का रास्ता खोल रहा है बल्कि अपने आने वाली पुश्तों से उनका जीने का सहारा ख़तम कर रहा है। जीने क लिए साफ़ हवा में सांस लेना , शुद्ध पानी ये कितने ही आवश्यक हैं इंसान इन्ही को खुद से दूर करता जा रहा है। कुछ लोगो द्वारा इन्हें बचाने के लिए काफी प्रयास भी किये गए, वृक्ष लगाए गए ,अनेक प्रकार की योजनएं अपनायी गयी मगर जो बदलाव एक वायरस ने कर दिया वो समझ से परे है ।



आज पूरा विश्व लोकडाउन में है , लोग अपने घरों में कैद हैं , व्यवस्थाएं सब बंद हैं ।ऐसे में अब धरती खुद को रिचार्ज कर रही है। नदियां खुद ब खुद स्व्च्छ हो रही है।जो दृशय सालो पूर्व लुप्त हो गये थे आज वो इंसान को फिर से देखने के लिए उभर रहे हैं। कोरोना काल से हमें प्रेरणा  लेनी चाहिए के प्रकति है तो ही जीवन है । जिस तरह हम  कोरोना से अपने आप के साथ दूसरों को  भी बचा रहे है इसी  तरह प्रकर्ति को भी आगे आने वाले समय में बचाना है ।

Saturday, May 9, 2020

आत्म बोध - बुद्धपूर्णिमा पर विशेष

"बुद्धं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि"

बुद्ध धर्म के रचतेया महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व  इश्वाकु वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ । जहाँ उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया इसके साथ साथ गौतम गोत्र में होने के कारण वह गौतम भी कहलाये। बाल अवस्था में ही उनकी माँ महामाया का निधन हो गया। सिद्धार्थ के नामकरण के दौरान एक पुरोहित ने उनके बारे में भविष्यवाणी करते हुए कहा , यह बालक एक या तो राजा बनेगा  या फिर एक पवित्र पथ  पर चलकर संसार का मार्गदर्शक करेगा।



गौतम बाल अवस्था से ही बड़े दयालु और शांत व्यक्तित्व के थे उन्हें राज महल  की गतिविधिों में बिलकुल भी रूचि नहीं थी । कुछ वर्ष उपरांत उनका विवाह यशोधरा से किया गया ।अपने विवाह के कुछ वर्षो बाद गौतम का मन वैराग्य में चला गया और अपनी पत्नी और पुत्र राहुल को छोड़कर वो ज्ञान की खोज के लिए वन में चले गए।

गौतम कब विरक्ति की ओर निकल पड़े ये उन्हें भी नहीं पता चला। एक बार की बात है जब गौतम अपने महल से बाहार घूमने के लिए निकले जहाँ रस्ते में उन्हें एक वृद्ध आदमी मिला जो चल पाने में असमर्थ था । कुछ समय बाद उन्हें एक रोगी मिला , जिसका शरीर दूसरे के सहारे चल रहा था। उसके बाद सिद्धार्थ को किसी की शव यात्रा निकलती दिखाई दी जिसके दृश्य ने उन्हें झकजोर कर रख दिया । जब वह आगे गए तो उन्हें एक सन्यासी मिला जिसने जीवन की सभी विरक्तियॉं को त्यागा हुआ था अतः उस संस्यासी ने बुद्ध को इतना प्रभावित किया जिससे सिद्धार्थ ने वन में जाकर कठोर तपस्या करने का निश्चय किआ और कुछ वर्षो बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई , जिस वृक्ष की छाया के नीचे गौतम तपस्या किया करते थे आज वो वृक्ष बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है और वो बुद्ध कहलाये गए ।

गौतम बुद्ध के अनुसार जीवन बहुत उतर चढ़ाव बड़ा होता है मंज़िल उसी को मिलती है तो निरंतर प्रयास करता रहता है। नीचे दिए हुए विशेष विचार जिससे गौतम बुद्ध महात्मा बुद्ध कहे जाने लगे।

१- बुद्ध कहते है अगर बुराई नहीं रहेगी तो अच्छाई उस पर अपनी चाप कैसे छोड़ पायेगी ।

२- अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग - गौतम बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को ही माध्यम मार्ग कहा , अष्टांगिक का अर्थ है ८ टांगों वाला मार्ग , ऐसा सफर जिसपर चलने कलिए हमेशा ८ बातों को ध्यान में रखा जाता है और वे हैं सम्यक दृष्टि , सम्यक वचन , सम्यक काम , सम्यक आजीव , सम्यक व्यायाम , सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। सिद्धार्थ का कहना था हमेशा बीच का रास्ता अपनाना चाइये जिससे किसी को भी ठेस नहीं पहुँचती ।

३- बुद्ध कहते हैं हमारा मैं बड़ा चंचल है हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते हैं।

४- क्रोध किसी का सगा नहीं हुआ इंसान हमेशा अपने क्रोध के कारण ही अपमानित होता है।

५- वर्तमान में जो हो रहा है सिर्फ उसी में ध्यान रखो।

६- स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है।

७- शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है ।

बुद्ध के महापरित्याग के बाद उनके द्वारा दिए हुए विचार ही आज संसार में बौद्ध भिक्षओं द्वारा फैलाये जा रहे हैं। वो बुद्ध के ही विचार थे जिसे सुनकर सम्राट अशोक ने कलिंगा में हुए नरसंघार के बाद बुद्ध धर्म अपनाया और इसकी स्थापना की और उनके विचार संसार के कोने कोने तक फैलाये जाने का निश्चय किया।  

Thursday, May 7, 2020

शहादत - ए -हिन्द

"मेरा रंग दे बसंती चोला
हो आज रंग दे हो माँ मेरा रंग दे
मेरा रंग दे बसंती चोला"

 २३ मार्च १९३१ को शहीद हुए भारत के वीर सपूत सरदार भगत सिंह के मुख से निकले ये गीत  के बोल हर उस शूरवीर के अंदर देशभक्ति का जज़्बा पैदा करते हैं जो अपने देश के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए हस्ते हस्ते अपनी मातृभूमि पर प्राण त्यागते हैं।हंदवाड़ा में शहीद हुए जवानो ने दुनिया के सामने जो मिसाल कायम की है । १२ घंटों से लगातार चल रहे आतंकियों के सर्च ऑपरेशन में निर्भयता से लड़ते हुए हिंदुस्तान के  ५ वीरो को वीरगति प्राप्त हुई जिसके एवज़ में इन्होने अपनी आखरी सांस तक आतंकियों कके साथ लड़ते हुए देश के दुश्मनो के मंजूबे नास्ते नाबूत कर दिए।आज पूरा हिंदुस्तान इनकी शहादत को हमेशा याद रखेगा जिन्होंने ने अपनी रणभूमि को कर्मभूमि बनाया और लड़ते हुए हिंदुस्तान के त्रिरंगे  में हमेशा के लिए सो गए।



दुश्मन चाहे कितना भी खतरनाक क्यों न इनके होसलो की उड़ान उनसे भी ऊपर है। जल हो , थल हो या नभ हो ये वीर जवान हर वार की काट करने में सक्षम हैं । सीना गर्व से प्रफुलित हो उड़ता है जब हिंदुस्तान अपनी कलम से इनकी शहादत को पन्नो पर उतारता है। गर्व है इनके माता पिता पर जिन्होंने ऐसे सपूत हिन्द को दिए ।

एक सिपाही के शब्द क्या होते होंगे जब वो घर से अपनों को अलविदा कह कर निकलता है वो यह नहीं सोचता के वो कल आएगा भी या नहीं बस इतना मैं में कहते हुए निकलता है के -

" जब तक लहू की एक भी बूँद भी बाकि है बाल न बाक़ा धरती माता का होने दूंगा
कसम खाकर निकला हूँ घर से मेरा देश की लाज बचाते हुए जान भी दे दी तो शहीद ही कहलाऊंगा "

गैस लीकेज त्रासदी का खौफनाक मंज़र

सावधानी हटी दुर्घटना घटी एक बड़ी ही प्रसिद्ध कहावत है । ३ दिसंबर १९८४ की वो रात जिसने पुरे भोपाल को हमेशा के लिए न भूलने वाला मंज़र दिखाया , जिसे लोग आज भी याद रखते हैं तो उसकी व्याकया सुनकर उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं । भोपाल गैस त्रासदी एक ऐसा गैस लीकेज हादसा यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड पेस्टिसाइड प्लांट में जो भोपाल,मध्य प्रदेश में कार्य कर रहा था। यह माना जाता है के ये विश्व के सबसे बड़े इंडस्ट्रियल हादसों में से था जिससे ३ लाख से ज़्यादा लोगो ने अपनी इस हादसे में अपनी जान गवाई और न जाने कितने ही इस हादसे क बाद भी अपंग पैदा हुए।


समय अभी बीता ही था के ६-मई २०२० की देर रात हुए विशाखापट्नम में हुए एक पॉलीमर कंपनी में भी ठीक उसी तरह गैस लीकेज की सूचना मिली । इमरजेंसी में कई लोगो को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जो लोग आंखों में जलन , सांस लेने में कठिनाई का सामना कर रहे थे। यह पॉलीमर कंपनी ठीक लोकडाउन के बाद खुलनी थी तो सवाल ये आता है के ज़िन्दगी भर के लिए जखम देने वाला ये हादसा , इसका ज़िम्मेदार कौन है। 


अभी तक भोपाल गैस को भी लोग भूल नहीं पाए थे इस  विज़ाग हादसे ने पुराने ज़ख्मो को फिर से ताज़ा कर दिया है। भोपल गैस त्रासदी में हुई जांच में ये पाया गया के गैस लीकेज के दौरान कोई भी सेफ्टी पॉइंट काम नहीं कर रहा था जिसकी वजह से  लगभग ५४००० पौंड "MIC "  नाम का केमिकल धीरे धीरे हवा में घुल गया और साथ ही वहां की ज़मीं में भी इस केमिकल ने अपनी जगह बना ली जिससे आज भी लोग जो उस गैस त्रासदी के विक्टिम भी नहीं है फिर भी वो अपंग जनम ले रहे हैं। आज भी उस रत को हुए अन्याय का अभी तक न्याय नहीं मिला है।

विज़ाग में हुए हादसे में अभी तक ११ लोग जान गवा बैठे हैं और ५००० से ज़्यादा बिमार हैं।  उम्मीद है के भोपाल गैस में हुई लापरवाही की वजह से हुई मौत इस विज़ाग में न देखने को मिले। दुर्घटना किसी के साथ भी हो सकती है मगर दुर्घटना हादसों में तब बदल जाती है जब लापरवाही होती है। आज भारत को भोपाल और विज़ाग में हुए गैस लीकेज हादसों से सीखने की ज़रूरत है के ऐसे हादसे जहाँ एक लापरवाही कैसे महामारी में तब्दील हो जाती है। ऐसे में इन हादसो से बचने का हल है पहला तो यह है के वैज्ञानिक कुछ इस तरह गैस का फोर्मेशन करें जिससे गैस फैलने से पहले ही तरल फॉर्म में तब्दील हो जाये इससे एक तो गैस हवा में नहीं फैलेगी और गैस फैलने के कारण लोगो को होने वाली सांस में तकलीफमें कमी आएगी। अगर ऐसा करना सम्भवता पॉसिबल नहीं है तो ऐसे फैक्ट्रीज को पुरे सेफ्टी मानकों के साथ ही खोलना चाइये ताकि किसी एक की लापरवाही हज़्ज़ारों की जान न ले पाए।   


Wednesday, May 6, 2020

ऐसी शूरवीरता पर हर कोई फ़िदा

कहते हैं देशभक्ति का कोई रंग नहीं होता । देशभक्ति ये शब्द अपने आप में ही इतना प्रेरणा दायक है के जब ही इस शब्द का प्रयोग होता है तो हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से छोड़ा हो जाता है। देशभक्ति एक ऐसी भावना जो समय , मज़हब , उम्र से ऊपर है ।

गीता में भगवन श्री कृष्णा अर्जुन को कर्मयोग  संदर्ब में जब उसे कर्म , अकर्मा , विकर्म के बारे में समझाते हैं तो कहते है किसी फल की इच्छा से किया काम वो कर्म है। श्री कृष्णा आगे कहते हैं अगर किसी कर्म में किसी दूसरे का हित नहीं है , स्वार्थ भावना से किया कर्म विकर्म कहलाता है ।
वहीँ बिना किसी स्वार्थ के बिना किसी फल की इच्छा किये बिना ऐसे कर्म जो दूसरों के हित में किया जाये वो अकर्मा कहलाता है ।



“”बहुत हुआ अब बंद करो, भटकन का अब अंत करो, देश हमारा ऊपर है, देश भक्ति सर्वोपरि है,
विविध बाधा आती रहती, आकांक्षा लुभाती रहती, विश्वशांति के अग्रदूत हम , “स्वामी” के अग्रज सपूत हम,
बनकर शांति सम्राट विश्व के, अमर करें यह काशी, हम हैं भारतवासी, हम हैं भारतवासी “”

घटना का घटित होना तो निर्धारित है मगर संकट के समय जो अपने देशवासियों के लिए अपनी सच्ची देशभक्ति से इन शब्दों का मतलब समझा जाये वही सच्चा देशभक्त है । आज पुरे विश्व में महामारी कोरोना वायरस अपने पैर तेज़ी से पसार रही है , हमारे डॉक्टर्स , नर्सेज सफाई कर्मचारी , पुलिस ये सब जहाँ फ्रोंटलाइन पर खड़े होकर अपनी जान को झोकीम में डालकर दूसरों को बचने में लगे है उसकी व्याख्या जितनी करें उतनी कम है क्यूंकि जो जज़्बा जो देशप्रेम उन्होंने दिखाया है आज सारी दुनिया इनके आगे नतमस्तक है।



आज इनके जज़्बे ने दिखा दिया है के जब तक हम हैं कोई भी संकट कमज़ोर नहीं कर सकता । जल , थल और नभ से लेकर पुरे विश्व इनके सम्मान में खड़े हैं चाहे इनके सम्मान में थालियां और तालियां बजाना हो या फिर दिए के प्रकाश से जगमगाता इनका हौसला को सलाम देना ये साबित करते हैं एक सच्चे देशभकत की परिभाषा।

इनका सम्मान हमें हर दिन हर पल करना चाहिए क्यूंकि हर पल अपने मौत को हाथ में लेकर घूमने वाले ये योद्धाओ की देशभक्ति अतुलनीय हैः। 

Tuesday, May 5, 2020

इरफ़ान खान -एक सफर का अंत।

इरफ़ान खान -एक सफर का अंत।
कहते हैं जो आया है उसने जाना ही है ये अटल सत्य है ,बीते कुछ दिनों में बॉलीवुड के इस महान सितारे  ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
इरफ़ान खान का जनम जयपुर में  मुस्लिम पठान फॅमिली में हुआ। उनको पहला ब्रेक एक टीवी सीरियल में मिला जहाँ से उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वो अपने अकेले के दम पर बॉलीवुड सिनेमा पर ऐसी छाप छोड़ी जहाँ से उनकी कामयाबी सिर्फ हिंदी सिनेमा तक ही सीमित नहीं थी उन्होनें स्लुम्दोग मिलियनेयर , लाइफ ऑफ़ पाई जैसे फिल्म्स में अपनी एहम भूमिका निभाई जिसके लिए उनको नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया।



पिछले २ साल से कैंसर से जूझ रहे इरफ़ान खान की आखिरी फिल्म थे अंग्रेजी मेडिओम थी हलाकि लॉकडाउन के चलते इस फिल्म को इतने विएवेर्स नहीं मिले मगर फिर भी जितने दिन ये थिएटर पर रही इसने कमाल ही किया । इरफ़ान अपने अभिनय को लेकर बहुत चूज़ी रहे हैं उन्होंने सिर्फ वही फिल्मो की जो उनके अभिनय को सूट करती थी । उनके निधन से ठीक ५ दिन पहले उनकी माँ का निधन हुआ हलाकि लॉकडाउन  वो उनकी आखरी विदाई के लिए जा न सके मगर आज वो हमेशा के लिए अपनी माँ की गोद में सो चुके हैं ।
इरफ़ान खान की कुछ फिल्म्स ऐसी फिल्म्स जो दर्शाती हैं एक मझे हुए कलाकार की खासियत।

१- पीकू
२- तलवार
३- लंचबॉक्स - ये फिल्म जिसने ग्रैंड रेल डी' और कांन्स में अपनी जगह बनायीं
४- स्लुम्दोग मिलियनेयर -इरफ़ान खान का टर्निंग पॉइंट इस फिल्म ने ८ ऑस्कर जीते और इरफ़ान खान को आउटस्टैंडिंग परफ़ॉर्मर करार दिया ।

भले ही आज ये अभिनेता हमारे बीच में नहीं है मगर इनकी कामयाबी का सफर हम सबके लिए प्रेरणा दायक है , इससे यह सीखने को मिलता है सफर चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो मगर मंज़िल मिल ही जाती है बस बात इतनी है के मेहनत और आशा कभी नहीं छोड़नी चाइये ।

अलविदा इरफ़ान खान !!

कोरोना वायरस एक विलन

बीते कुछ दिनों में जो संसार में घटित हो रहा है उसने भूले बिसरे संस्कारो को हमारे फिर से ज़िंदा कर दिया है।
मैं बात कर रही हूँ कोरोना वायरस , एक ऐसा विलन जिसकी न कोई जाती है न कोई मज़हब।  यह एक ऐसी  महामारी है जिसने लोगो को घरों में बैठने पर मजबूर कर दिया है।

व्यापार सब थप पड़े हैं अर्थवव्यस्था पर पड़ी इस महामारी की चोट जो पुरे विश्व में पड़ी है वो भूले नहीं भूलेगा।
विकसित देशों पर मंडराता हर दिन  मौत का साये का दृश्ये कुछ ऐसा ही दर्शाता है के महामारी के आगे ताकत भी काम नहीं आती । काम आती है तो सिर्फ बुद्धिमानी , हर बार अपने घमंड में मदमस्त रहने वाले ये विकसित देशो ने भी घुटने आखिर टेक ही दिए । इंसान की कीमत शायद वो लोग भूल गए हैं , भूल गए हैं की अगर इंसान रहेगा तो ही अर्थव्यवस्था व्यवस्थित होगी।



महामारी के इस संकट  समय में विजय उसी की होती है जो पहला कदम दूसरों क हिट में पहले रखता है ।
भगवन श्री कृष्णा कहते है सृष्टि मेरे ही अधीन है मैं ही करता हूँ मगर मैं यह भी कहता हूँ करम को करते रहना ही इसका समाधान है। इस संसार में जो भी घटित होता है उसके होने का एक महत्त्व होता है ।

कोरोना वायरस जहाँ एक और इंसान का काल बना हुआ है , वही दूसरी और प्रकृति के लिए फायदे का साबित हुआ एक तरफ इंसान घरों में कैद है व्ही प्रकृति ने बहार आकर अपनी अनोखी अदाओं से कुछ ऐसे नज़ारे पेश कर रही है जो कभी प्रदूषण की चादर से लुप्त हो गए थे । नदियाँ जो लाखों क्रोड़ों खर्च करने के बाद भी साफ़ नहीं हो पायी वो आज इस महामारी से साफ़ होती दिख रही हैँ। पशु पक्षी बाहर आकर साफ़ हवा में सांस लेने लगे हैं ।

भले ही हमें अपने घरों में कैद होना पद रहा है मगर जो समय अपनों के साथ बीत रहा है वो अकल्पनीय अतुलनीय है । हमें मिलकर इस कोरोना वायरस की कड़ी को तोडना है और इस महामारी ये सीखना है अपनों के साथ से हम हर संकट का सामना कर सकते हैं ।