Thursday, May 7, 2020

शहादत - ए -हिन्द

"मेरा रंग दे बसंती चोला
हो आज रंग दे हो माँ मेरा रंग दे
मेरा रंग दे बसंती चोला"

 २३ मार्च १९३१ को शहीद हुए भारत के वीर सपूत सरदार भगत सिंह के मुख से निकले ये गीत  के बोल हर उस शूरवीर के अंदर देशभक्ति का जज़्बा पैदा करते हैं जो अपने देश के लिए अपनी जान की परवाह न करते हुए हस्ते हस्ते अपनी मातृभूमि पर प्राण त्यागते हैं।हंदवाड़ा में शहीद हुए जवानो ने दुनिया के सामने जो मिसाल कायम की है । १२ घंटों से लगातार चल रहे आतंकियों के सर्च ऑपरेशन में निर्भयता से लड़ते हुए हिंदुस्तान के  ५ वीरो को वीरगति प्राप्त हुई जिसके एवज़ में इन्होने अपनी आखरी सांस तक आतंकियों कके साथ लड़ते हुए देश के दुश्मनो के मंजूबे नास्ते नाबूत कर दिए।आज पूरा हिंदुस्तान इनकी शहादत को हमेशा याद रखेगा जिन्होंने ने अपनी रणभूमि को कर्मभूमि बनाया और लड़ते हुए हिंदुस्तान के त्रिरंगे  में हमेशा के लिए सो गए।



दुश्मन चाहे कितना भी खतरनाक क्यों न इनके होसलो की उड़ान उनसे भी ऊपर है। जल हो , थल हो या नभ हो ये वीर जवान हर वार की काट करने में सक्षम हैं । सीना गर्व से प्रफुलित हो उड़ता है जब हिंदुस्तान अपनी कलम से इनकी शहादत को पन्नो पर उतारता है। गर्व है इनके माता पिता पर जिन्होंने ऐसे सपूत हिन्द को दिए ।

एक सिपाही के शब्द क्या होते होंगे जब वो घर से अपनों को अलविदा कह कर निकलता है वो यह नहीं सोचता के वो कल आएगा भी या नहीं बस इतना मैं में कहते हुए निकलता है के -

" जब तक लहू की एक भी बूँद भी बाकि है बाल न बाक़ा धरती माता का होने दूंगा
कसम खाकर निकला हूँ घर से मेरा देश की लाज बचाते हुए जान भी दे दी तो शहीद ही कहलाऊंगा "

गैस लीकेज त्रासदी का खौफनाक मंज़र

सावधानी हटी दुर्घटना घटी एक बड़ी ही प्रसिद्ध कहावत है । ३ दिसंबर १९८४ की वो रात जिसने पुरे भोपाल को हमेशा के लिए न भूलने वाला मंज़र दिखाया , जिसे लोग आज भी याद रखते हैं तो उसकी व्याकया सुनकर उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं । भोपाल गैस त्रासदी एक ऐसा गैस लीकेज हादसा यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड पेस्टिसाइड प्लांट में जो भोपाल,मध्य प्रदेश में कार्य कर रहा था। यह माना जाता है के ये विश्व के सबसे बड़े इंडस्ट्रियल हादसों में से था जिससे ३ लाख से ज़्यादा लोगो ने अपनी इस हादसे में अपनी जान गवाई और न जाने कितने ही इस हादसे क बाद भी अपंग पैदा हुए।


समय अभी बीता ही था के ६-मई २०२० की देर रात हुए विशाखापट्नम में हुए एक पॉलीमर कंपनी में भी ठीक उसी तरह गैस लीकेज की सूचना मिली । इमरजेंसी में कई लोगो को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया जो लोग आंखों में जलन , सांस लेने में कठिनाई का सामना कर रहे थे। यह पॉलीमर कंपनी ठीक लोकडाउन के बाद खुलनी थी तो सवाल ये आता है के ज़िन्दगी भर के लिए जखम देने वाला ये हादसा , इसका ज़िम्मेदार कौन है। 


अभी तक भोपाल गैस को भी लोग भूल नहीं पाए थे इस  विज़ाग हादसे ने पुराने ज़ख्मो को फिर से ताज़ा कर दिया है। भोपल गैस त्रासदी में हुई जांच में ये पाया गया के गैस लीकेज के दौरान कोई भी सेफ्टी पॉइंट काम नहीं कर रहा था जिसकी वजह से  लगभग ५४००० पौंड "MIC "  नाम का केमिकल धीरे धीरे हवा में घुल गया और साथ ही वहां की ज़मीं में भी इस केमिकल ने अपनी जगह बना ली जिससे आज भी लोग जो उस गैस त्रासदी के विक्टिम भी नहीं है फिर भी वो अपंग जनम ले रहे हैं। आज भी उस रत को हुए अन्याय का अभी तक न्याय नहीं मिला है।

विज़ाग में हुए हादसे में अभी तक ११ लोग जान गवा बैठे हैं और ५००० से ज़्यादा बिमार हैं।  उम्मीद है के भोपाल गैस में हुई लापरवाही की वजह से हुई मौत इस विज़ाग में न देखने को मिले। दुर्घटना किसी के साथ भी हो सकती है मगर दुर्घटना हादसों में तब बदल जाती है जब लापरवाही होती है। आज भारत को भोपाल और विज़ाग में हुए गैस लीकेज हादसों से सीखने की ज़रूरत है के ऐसे हादसे जहाँ एक लापरवाही कैसे महामारी में तब्दील हो जाती है। ऐसे में इन हादसो से बचने का हल है पहला तो यह है के वैज्ञानिक कुछ इस तरह गैस का फोर्मेशन करें जिससे गैस फैलने से पहले ही तरल फॉर्म में तब्दील हो जाये इससे एक तो गैस हवा में नहीं फैलेगी और गैस फैलने के कारण लोगो को होने वाली सांस में तकलीफमें कमी आएगी। अगर ऐसा करना सम्भवता पॉसिबल नहीं है तो ऐसे फैक्ट्रीज को पुरे सेफ्टी मानकों के साथ ही खोलना चाइये ताकि किसी एक की लापरवाही हज़्ज़ारों की जान न ले पाए।   


Wednesday, May 6, 2020

ऐसी शूरवीरता पर हर कोई फ़िदा

कहते हैं देशभक्ति का कोई रंग नहीं होता । देशभक्ति ये शब्द अपने आप में ही इतना प्रेरणा दायक है के जब ही इस शब्द का प्रयोग होता है तो हर हिंदुस्तानी का सीना गर्व से छोड़ा हो जाता है। देशभक्ति एक ऐसी भावना जो समय , मज़हब , उम्र से ऊपर है ।

गीता में भगवन श्री कृष्णा अर्जुन को कर्मयोग  संदर्ब में जब उसे कर्म , अकर्मा , विकर्म के बारे में समझाते हैं तो कहते है किसी फल की इच्छा से किया काम वो कर्म है। श्री कृष्णा आगे कहते हैं अगर किसी कर्म में किसी दूसरे का हित नहीं है , स्वार्थ भावना से किया कर्म विकर्म कहलाता है ।
वहीँ बिना किसी स्वार्थ के बिना किसी फल की इच्छा किये बिना ऐसे कर्म जो दूसरों के हित में किया जाये वो अकर्मा कहलाता है ।



“”बहुत हुआ अब बंद करो, भटकन का अब अंत करो, देश हमारा ऊपर है, देश भक्ति सर्वोपरि है,
विविध बाधा आती रहती, आकांक्षा लुभाती रहती, विश्वशांति के अग्रदूत हम , “स्वामी” के अग्रज सपूत हम,
बनकर शांति सम्राट विश्व के, अमर करें यह काशी, हम हैं भारतवासी, हम हैं भारतवासी “”

घटना का घटित होना तो निर्धारित है मगर संकट के समय जो अपने देशवासियों के लिए अपनी सच्ची देशभक्ति से इन शब्दों का मतलब समझा जाये वही सच्चा देशभक्त है । आज पुरे विश्व में महामारी कोरोना वायरस अपने पैर तेज़ी से पसार रही है , हमारे डॉक्टर्स , नर्सेज सफाई कर्मचारी , पुलिस ये सब जहाँ फ्रोंटलाइन पर खड़े होकर अपनी जान को झोकीम में डालकर दूसरों को बचने में लगे है उसकी व्याख्या जितनी करें उतनी कम है क्यूंकि जो जज़्बा जो देशप्रेम उन्होंने दिखाया है आज सारी दुनिया इनके आगे नतमस्तक है।



आज इनके जज़्बे ने दिखा दिया है के जब तक हम हैं कोई भी संकट कमज़ोर नहीं कर सकता । जल , थल और नभ से लेकर पुरे विश्व इनके सम्मान में खड़े हैं चाहे इनके सम्मान में थालियां और तालियां बजाना हो या फिर दिए के प्रकाश से जगमगाता इनका हौसला को सलाम देना ये साबित करते हैं एक सच्चे देशभकत की परिभाषा।

इनका सम्मान हमें हर दिन हर पल करना चाहिए क्यूंकि हर पल अपने मौत को हाथ में लेकर घूमने वाले ये योद्धाओ की देशभक्ति अतुलनीय हैः। 

Tuesday, May 5, 2020

इरफ़ान खान -एक सफर का अंत।

इरफ़ान खान -एक सफर का अंत।
कहते हैं जो आया है उसने जाना ही है ये अटल सत्य है ,बीते कुछ दिनों में बॉलीवुड के इस महान सितारे  ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
इरफ़ान खान का जनम जयपुर में  मुस्लिम पठान फॅमिली में हुआ। उनको पहला ब्रेक एक टीवी सीरियल में मिला जहाँ से उन्होनें कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वो अपने अकेले के दम पर बॉलीवुड सिनेमा पर ऐसी छाप छोड़ी जहाँ से उनकी कामयाबी सिर्फ हिंदी सिनेमा तक ही सीमित नहीं थी उन्होनें स्लुम्दोग मिलियनेयर , लाइफ ऑफ़ पाई जैसे फिल्म्स में अपनी एहम भूमिका निभाई जिसके लिए उनको नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया।



पिछले २ साल से कैंसर से जूझ रहे इरफ़ान खान की आखिरी फिल्म थे अंग्रेजी मेडिओम थी हलाकि लॉकडाउन के चलते इस फिल्म को इतने विएवेर्स नहीं मिले मगर फिर भी जितने दिन ये थिएटर पर रही इसने कमाल ही किया । इरफ़ान अपने अभिनय को लेकर बहुत चूज़ी रहे हैं उन्होंने सिर्फ वही फिल्मो की जो उनके अभिनय को सूट करती थी । उनके निधन से ठीक ५ दिन पहले उनकी माँ का निधन हुआ हलाकि लॉकडाउन  वो उनकी आखरी विदाई के लिए जा न सके मगर आज वो हमेशा के लिए अपनी माँ की गोद में सो चुके हैं ।
इरफ़ान खान की कुछ फिल्म्स ऐसी फिल्म्स जो दर्शाती हैं एक मझे हुए कलाकार की खासियत।

१- पीकू
२- तलवार
३- लंचबॉक्स - ये फिल्म जिसने ग्रैंड रेल डी' और कांन्स में अपनी जगह बनायीं
४- स्लुम्दोग मिलियनेयर -इरफ़ान खान का टर्निंग पॉइंट इस फिल्म ने ८ ऑस्कर जीते और इरफ़ान खान को आउटस्टैंडिंग परफ़ॉर्मर करार दिया ।

भले ही आज ये अभिनेता हमारे बीच में नहीं है मगर इनकी कामयाबी का सफर हम सबके लिए प्रेरणा दायक है , इससे यह सीखने को मिलता है सफर चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो मगर मंज़िल मिल ही जाती है बस बात इतनी है के मेहनत और आशा कभी नहीं छोड़नी चाइये ।

अलविदा इरफ़ान खान !!

कोरोना वायरस एक विलन

बीते कुछ दिनों में जो संसार में घटित हो रहा है उसने भूले बिसरे संस्कारो को हमारे फिर से ज़िंदा कर दिया है।
मैं बात कर रही हूँ कोरोना वायरस , एक ऐसा विलन जिसकी न कोई जाती है न कोई मज़हब।  यह एक ऐसी  महामारी है जिसने लोगो को घरों में बैठने पर मजबूर कर दिया है।

व्यापार सब थप पड़े हैं अर्थवव्यस्था पर पड़ी इस महामारी की चोट जो पुरे विश्व में पड़ी है वो भूले नहीं भूलेगा।
विकसित देशों पर मंडराता हर दिन  मौत का साये का दृश्ये कुछ ऐसा ही दर्शाता है के महामारी के आगे ताकत भी काम नहीं आती । काम आती है तो सिर्फ बुद्धिमानी , हर बार अपने घमंड में मदमस्त रहने वाले ये विकसित देशो ने भी घुटने आखिर टेक ही दिए । इंसान की कीमत शायद वो लोग भूल गए हैं , भूल गए हैं की अगर इंसान रहेगा तो ही अर्थव्यवस्था व्यवस्थित होगी।



महामारी के इस संकट  समय में विजय उसी की होती है जो पहला कदम दूसरों क हिट में पहले रखता है ।
भगवन श्री कृष्णा कहते है सृष्टि मेरे ही अधीन है मैं ही करता हूँ मगर मैं यह भी कहता हूँ करम को करते रहना ही इसका समाधान है। इस संसार में जो भी घटित होता है उसके होने का एक महत्त्व होता है ।

कोरोना वायरस जहाँ एक और इंसान का काल बना हुआ है , वही दूसरी और प्रकृति के लिए फायदे का साबित हुआ एक तरफ इंसान घरों में कैद है व्ही प्रकृति ने बहार आकर अपनी अनोखी अदाओं से कुछ ऐसे नज़ारे पेश कर रही है जो कभी प्रदूषण की चादर से लुप्त हो गए थे । नदियाँ जो लाखों क्रोड़ों खर्च करने के बाद भी साफ़ नहीं हो पायी वो आज इस महामारी से साफ़ होती दिख रही हैँ। पशु पक्षी बाहर आकर साफ़ हवा में सांस लेने लगे हैं ।

भले ही हमें अपने घरों में कैद होना पद रहा है मगर जो समय अपनों के साथ बीत रहा है वो अकल्पनीय अतुलनीय है । हमें मिलकर इस कोरोना वायरस की कड़ी को तोडना है और इस महामारी ये सीखना है अपनों के साथ से हम हर संकट का सामना कर सकते हैं ।