Wednesday, May 27, 2020

गुरुग्राम से दरभंगा-ज्योति की ज्योति

हौसले उम्र के मोहताज नहीं होते बस कुछ कारण वर्ष छुप जाते हैं। ज़रूरत होती है तो सिर्फ किसी घटना की जब इंसान के अंदर छुपी उसकी क़ाबलियत लोगो के लिए प्रेरणा बनकर बाहर आती है। आज ज्योति को सही मायनो में उसकी सही पहचान मिली है। ये कहानी है भारत की साइकिल गर्ल ज्योति की। लॉकडाउन में लोगो के पलायन की वजा से कोरोना संक्रमण का खतरा और बड़ा वही सरकार भी मुस्तैद हुई। शार्मिक ट्रेंस चलायी गयी लोगो को अपने अपने गंतव्यों पर पहुंचाया गया। दूसरी और एक लड़की जिसने अपने बीमार बाप को १२०० कम की दुरी तेह कर गुरुग्राम से दरभंगा तक साइकिल पर बेखौफ होकर ले आयी वो तारीफ के काबिल है। दरभंगा की रहने वाली लड़की ज्योति ये सुनिश्तित किया के हौसला उम्र देखकर नहीं आता महज़ १५ साल की उम्र में उसने ये कारनामा कर न सिर्फ हिंदुस्तान में अपना नाम कमाया बल्कि सुपर पावर अमेरिका के राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रम्प तक को अपने कारनामे पर ट्वीट करने पर मजबूर कर दिया |

इवांका , ज्योति और उसके पिता के संग फोटो को ट्वीट करते हुए लिखती हैं १५ साल की मुकर अपने बीमार बाप को १२००कम की दुरी तेह कर अपने घर लायी जिससे भारत के लोग तो प्रेरित हुए ही हैं साथ ही साथ साइकिल फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ने भी ज्योति को दिल्ली आने का बुलावा दिए ताकि वो अपने इस हौसले से और प्रेरित करें। "हार तेरे गिरने मैं तेरी हार नहीं, तू इंसान है कोई अवतार नहीं, गिर, उठ, चल, दौड़ फिर भाग, क्योंकि जिंदगी संक्षिप्त है इसका कोई सार नहीं ।"

Monday, May 25, 2020

गंगाजल-क्या लोगो को कोरोना से लड़ने में मदद करेगा।

बरसों से धरती पर पाप नाशनी भागीरथी जिसे हम गंगा भी कहते हैं उसका जल किसी चमत्कारी औषधि से कम नहीं है.हाल में किया गया दावा जो यह कहता है के गंगा का जल एक नेचुरल हैंड सांइटिज़ेर या फिर कोरोना की वैक्सीन बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है .वैज्ञानिक शोध के अनुसार गंगा के जल में ऐसे बैक्टीरिया पाए जाते हैं जिससे उसका जल कभी सड़ता नहीं है. शोध में ये भी माना गया है के गंगा नदी में जो खूबियां है वो किसी और नदी मे नहीं है.क्यूंकि कहा जाता है जब गंगा हिमालय के गोमुख से होकर गुज़रती है तो अपने साथ ओषधियों के उद्धरण भी लेकर गुज़रती है।

गंगाजल में सिर्फ यही नहीं बहुत से किस्म के शोध भी हुए हैं जैसे रेडियोलॉजिकल टेस्ट , माइक्रोबायोलोजिकल टेस्ट , बायोलॉजिकल टेस्ट।गंगाजल के जीवाणु जैसे एस्केरेशिआ, एन्टेरोबेक्टर, साल्मोनेला , शिगेला और विब्रिओ। ये जीवाणु कुछ हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है और कुछ नुकसानदायी मगर इस शोध में आगे ये भी पता चला गंगा के पानी में इन जीवाणु के इलावा ११०० किसम के बक्टेरिओफैज़ पाए जाते है जो इसे अमृत बनाते है। ये बक्टेरिओफैज़ ऐसे जीवाणु को कहते हैं जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद नहीं है। इसी के तहत गंगा का जल ऐसी बीमारियों के उपयोग में लाया जा सकता है जो बैक्टीरिया से उत्पन होती है।


सवाल ये है क्या गंगा का जल कोरोना के वैक्सीन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। क्यूंकि कोरोना बीमारी बैक्टीरिया से उत्पन हुई बीमारी नहीं है बल्कि ये वायरस से उत्पन हुई बीमारी है। फ़िलहाल ICMR को एक पत्र द्वारा इसके जल की फिर से शोध करने की अपील की गयी है।

Friday, May 22, 2020

अश्वगंधा - क्या कोरोना की काट बन सकती है ?

आज पूरी दुनिया कोरोना की वैक्सीन बनाने के लिए दिन रात जुटी हुई है। लगभग १००-२०० से ज़्यादा मेडिसिन्स के ऊपर शोध चल रहा है। कुछ तो ट्रायल के पहले फेज पर हैं कुछ का क्लीनिकल ट्रायल का आखिरी चरण है। इसी दौरान भारत के वैज्ञानिको की नज़र इसकी सबसे प्राचीन चिकित्सा "आयुर्वेदः" पर पड़ी है। सदियों पुराने इस चिकित्सा का माना जाता है की हर बीमारी से लड़ने में यह सक्षम है। आज जब कोरोना जैसी घातक महामारी का सटीक इलाज अभी मिलता नज़र नहीं आ रहा है वहीं आयुर्वेदः में औषदि गुणों की खान कहे जाने वाली जड़ी बूटी "अश्वगंधा" पर दिल्ली और जापान की नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस्ड साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी ने इस पर एक शोध किया है।

इस शोध में ये पाया गया है की अश्वगंधा में एक पदार्थ पाया जाता है जिसका नाम है "Withanone" ये पदार्थ कोरोना के रेप्लिकेशन को रोक सकता है। कोरोना वायरस की जब शोध हुई तो उसमें पाया गया की यह एक ऐसा वायरस है जो इंसान के शरीर में जाकर अपने आप को क्लोनिंग करता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। मिनिस्ट्री ऑफ़ आयुष और CSIR ने कहा है अश्वगंधा के साथ कुछ और आयुर्वेदः की दवाओं को उपयोग कर इस पर क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति जल्द ही मिलेगी।

आयुर्वेदः में कहना है अश्वगंधा के कई फायदे हैं जैसे ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल , ब्लड प्रेशर को कम करना , मांसपेशियों क ताकत देना, ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है । मगर इस बार देखना ये होगा जब आयुर्वेदः और आधुनिक विज्ञान का संगम मिलकर ऐसा कुछ मुकाम हासिल कर सकते है जिससे ये महामारी का संकट दूर हो सके।

Monday, May 18, 2020

हर जन की आवाज़ लोकल को वोकल बनाये - स्वदेशी को ही रोज़मर्रा में लाएं


कोरोना संकट में जब हर देश इस बीमारी से लड़ने में लगे हुए है। वहीं भारत की कोशिश है पूरी दुनिया में वो अपनी उपलब्धियों का परचम लहराए किस तरह स्वदेशी ही दुनिया में विस्तार से फैले और इससे ये सिद्ध हो सके जो मेक इन इंडिया है वही सर्वश्रेष्ठ है। इस महामारी ने हमें खुद के हुनर को पहचानने का मौका दिया है , हम क्या क्या कर सकते है ये खोयी हुई पहचान बनाने का मौका दिया है ताकि दुनिया भर में हम सीना ठोक कर कह सके के हम किसी से कम नहीं।
जब संकट आता है तो भारत की विभिन्ता कैसे एकता में बदलती है और एक नया इतिहास रचती है इसका इतिहास गवा है। १९६२ में जब इंडिया चीन का युद्ध हुआ तो इंडिया आर्थिक रूप से कमज़ोर हो गया और भारत में भयंकर भुखमरी हुई । १९६५ में जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने तो कुछ समय बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो अमेरिका के राष्ट्रपति ने शास्त्री जी से कहा के वो युद्ध बन करवा दें नहीं तो गेंहू का निर्यात बंद हो जायेगा तो शास्त्री अपनी बात पर अडिग रहे उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति की नहीं सुनी और कहने लगे के अगर गेंहू का निर्यात बंद होता है तो हो जाये। उसके बाद जब लाल बहादुर शास्त्री ने अपील की भारत की जनता से सब एक दिन का उपवास कीजिये और कृषि क्षेत्र में आतम निर्भर हो जाएं तो पूरा देश ने उनके शब्द सर माथे लिए और एक वो मंजर आया जब भारत गेंहू का सबसे बड़ा सप्लायर बना।

आज भी वही समय है एक बार फिर भारत इस आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र रहा है एक समय था जब भारत ने कोरोना में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल प्रोडक्ट्स जैसे वेंटिलेटर्स ,PPE किट, N95 मास्क बाहर से आयत किये मगर जब वही उपकरण बेकार निकले तो भारत ने ठान लिया ज़रूरत पड़ी है तो इसे हमें खुद ही इन्हें तैयार करना है और आज भारत ने ऐसे वेंटिलेटर्स बनाये है जिसकी गुंडवत्ता का कोई जवाब नही। मात्र १० दिन में त्यार की गयी टेस्टिंग किट ने तो पूरे विश्व में भारत को चर्चा का विषय बना दिया । बस अब यही लक्ष्य है जो पिछले ७० सालो से जिसकी आदत यह लग चुकी थी उसे अब दूर हटाकर अपना वर्चस्व कायम कर दुनिया को दिखाना है जो स्वदेशी है वही सटीक है।

Wednesday, May 13, 2020

आत्म निर्भर होगा भारत

कहते हैं हर संकट हमेशा अच्छी सीख देकर जाता है ।क्यूंकि संकट में एक अवसर है बदलाव का। कोरोना वायरस आज पूरे देश में एक ज़हर की तरह घुल रहा है । भारत समेत अनेक विकसित देश भी इसकी चपेट में है , न जाने कितने ही लोग इससे अब तक संक्रमित है और कितने ही इससे अपनी जान गवा बैठे हैं। आज अर्थव्यवस्था पूरी तरह डगमगा चुकी है मगर भारत में ये संकट उसके लिए एक सुनेहरा अवसर लेकर आया है । जिससे भारत एक बेहतर अर्थव्यव्स्थित देश ही नहीं बनेगा बल्कि आत्म निर्भर होकर समूचे विश्व के लिए एक मिसाल भी पेश करेगा।

भारत द्वारा इस संकट की घडी में सही वक़्त पर लिए गए निर्णय, उसकी कार्यशैली पर निसंदेह आज पूरी दुनिया की नज़रें है क्यूंकि भारत जनसंख्या के मामले में दूसरे नंबर पर है मगर जिस ढंग से कोरोना को कण्ट्रोल किये हुए है वो सराहनीये है । आज बड़ी बड़ी सर्वे कम्पनीज जब विश्व का कोरोना संकट से उसकी मैनेजमेंट का सर्वे करती हैं तो भारत को पहले पायदान पर पाती है। चाहे मरकज़ हो या फिर मज़दूरों का पलायन इन सभी कमज़ोर कर देने वाली घटनाओ के आगे भी भारत ने अपने घुटने नहीं टेके बल्कि और भी मज़बूती से काम करता गया ।
make in india


"वसुदेव कुटुंबकम " की परिभाषा भी भारत ने इस संकट में सिद्ध करके दिखाई है । जिस तरह भारत ने अपने पडोसी देशों को जो मेडिसिन मदद भेजी है ,उससे भारत के आगे सभी विकसित देश नतमस्तक हैं। कोरोना के जन्मदाता से धोखा खाने के बाद विकसित देशों की कम्पनीज आज भारत में निवेश करने के लिए उत्साहित हैं । आज भारत में उसके इसी आत्म बल पर PPE किट हो, वेंटिलेटर्स हो , मास्क हो, सेनिटाइज़र्स हो इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। यही नहीं भारत कोरोना की वैक्सीन बनाने के भी करीब है । भारत की युवा शक्ति ये हौसला दिलाती है के भारत आत्म निर्भर बनेगा और आने वाले कुछ वर्षो में भारत फिर से सोने की चिड़िया कहलायेगा।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल शब्द आज भारत को इसी संकल्प के साथ इस महामारी से लड़ने का हौसला दे रहे हैं -

"जागो उठो और तब तक मत रुको 
जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये"

Monday, May 11, 2020

अर्थ इस रिचार्जिंग

कोरोना के कहर से पूरा विश्व देहल रहा है वहीं धरती अब फिर से मुस्कुराने लगी है प्रकति एक अनोखे ही अंदाज़ में अपने जलवे दिखला रही है । कोरोना काल से कुछ वर्ष पूर्व की बात ही करें तो हम पाएंगे की कैसे इंसान प्रकर्ति का दुश्मन बना हुआ था। लगातार हो रही वृक्षों की कटाई ,हवा में ज़हर घोलता प्रदूषण ये काफी नहीं प्रकर्ति की तबाही के लिए।



इंसान भूल गया है जिस बेइन्ताह वो प्रकर्ति से खिलवाड़ कर रहा है इससे न सिर्फ खुद के लिए पतन का रास्ता खोल रहा है बल्कि अपने आने वाली पुश्तों से उनका जीने का सहारा ख़तम कर रहा है। जीने क लिए साफ़ हवा में सांस लेना , शुद्ध पानी ये कितने ही आवश्यक हैं इंसान इन्ही को खुद से दूर करता जा रहा है। कुछ लोगो द्वारा इन्हें बचाने के लिए काफी प्रयास भी किये गए, वृक्ष लगाए गए ,अनेक प्रकार की योजनएं अपनायी गयी मगर जो बदलाव एक वायरस ने कर दिया वो समझ से परे है ।



आज पूरा विश्व लोकडाउन में है , लोग अपने घरों में कैद हैं , व्यवस्थाएं सब बंद हैं ।ऐसे में अब धरती खुद को रिचार्ज कर रही है। नदियां खुद ब खुद स्व्च्छ हो रही है।जो दृशय सालो पूर्व लुप्त हो गये थे आज वो इंसान को फिर से देखने के लिए उभर रहे हैं। कोरोना काल से हमें प्रेरणा  लेनी चाहिए के प्रकति है तो ही जीवन है । जिस तरह हम  कोरोना से अपने आप के साथ दूसरों को  भी बचा रहे है इसी  तरह प्रकर्ति को भी आगे आने वाले समय में बचाना है ।

Saturday, May 9, 2020

आत्म बोध - बुद्धपूर्णिमा पर विशेष

"बुद्धं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि"

बुद्ध धर्म के रचतेया महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व  इश्वाकु वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ । जहाँ उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया इसके साथ साथ गौतम गोत्र में होने के कारण वह गौतम भी कहलाये। बाल अवस्था में ही उनकी माँ महामाया का निधन हो गया। सिद्धार्थ के नामकरण के दौरान एक पुरोहित ने उनके बारे में भविष्यवाणी करते हुए कहा , यह बालक एक या तो राजा बनेगा  या फिर एक पवित्र पथ  पर चलकर संसार का मार्गदर्शक करेगा।



गौतम बाल अवस्था से ही बड़े दयालु और शांत व्यक्तित्व के थे उन्हें राज महल  की गतिविधिों में बिलकुल भी रूचि नहीं थी । कुछ वर्ष उपरांत उनका विवाह यशोधरा से किया गया ।अपने विवाह के कुछ वर्षो बाद गौतम का मन वैराग्य में चला गया और अपनी पत्नी और पुत्र राहुल को छोड़कर वो ज्ञान की खोज के लिए वन में चले गए।

गौतम कब विरक्ति की ओर निकल पड़े ये उन्हें भी नहीं पता चला। एक बार की बात है जब गौतम अपने महल से बाहार घूमने के लिए निकले जहाँ रस्ते में उन्हें एक वृद्ध आदमी मिला जो चल पाने में असमर्थ था । कुछ समय बाद उन्हें एक रोगी मिला , जिसका शरीर दूसरे के सहारे चल रहा था। उसके बाद सिद्धार्थ को किसी की शव यात्रा निकलती दिखाई दी जिसके दृश्य ने उन्हें झकजोर कर रख दिया । जब वह आगे गए तो उन्हें एक सन्यासी मिला जिसने जीवन की सभी विरक्तियॉं को त्यागा हुआ था अतः उस संस्यासी ने बुद्ध को इतना प्रभावित किया जिससे सिद्धार्थ ने वन में जाकर कठोर तपस्या करने का निश्चय किआ और कुछ वर्षो बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई , जिस वृक्ष की छाया के नीचे गौतम तपस्या किया करते थे आज वो वृक्ष बिहार के बोधगया में बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है और वो बुद्ध कहलाये गए ।

गौतम बुद्ध के अनुसार जीवन बहुत उतर चढ़ाव बड़ा होता है मंज़िल उसी को मिलती है तो निरंतर प्रयास करता रहता है। नीचे दिए हुए विशेष विचार जिससे गौतम बुद्ध महात्मा बुद्ध कहे जाने लगे।

१- बुद्ध कहते है अगर बुराई नहीं रहेगी तो अच्छाई उस पर अपनी चाप कैसे छोड़ पायेगी ।

२- अष्टांगिक मार्ग या मध्यम मार्ग - गौतम बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को ही माध्यम मार्ग कहा , अष्टांगिक का अर्थ है ८ टांगों वाला मार्ग , ऐसा सफर जिसपर चलने कलिए हमेशा ८ बातों को ध्यान में रखा जाता है और वे हैं सम्यक दृष्टि , सम्यक वचन , सम्यक काम , सम्यक आजीव , सम्यक व्यायाम , सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। सिद्धार्थ का कहना था हमेशा बीच का रास्ता अपनाना चाइये जिससे किसी को भी ठेस नहीं पहुँचती ।

३- बुद्ध कहते हैं हमारा मैं बड़ा चंचल है हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते हैं।

४- क्रोध किसी का सगा नहीं हुआ इंसान हमेशा अपने क्रोध के कारण ही अपमानित होता है।

५- वर्तमान में जो हो रहा है सिर्फ उसी में ध्यान रखो।

६- स्वास्थ्य सबसे बड़ा उपहार है, संतोष सबसे बड़ा धन है, वफ़ादारी सबसे बड़ा संबंध है।

७- शक की आदत से भयावह कुछ भी नहीं है। शक लोगों को अलग करता है। यह एक ऐसा ज़हर है जो मित्रता ख़त्म करता है और अच्छे रिश्तों को तोड़ता है। यह एक काँटा है जो चोटिल करता है, एक तलवार है जो वध करती है ।

बुद्ध के महापरित्याग के बाद उनके द्वारा दिए हुए विचार ही आज संसार में बौद्ध भिक्षओं द्वारा फैलाये जा रहे हैं। वो बुद्ध के ही विचार थे जिसे सुनकर सम्राट अशोक ने कलिंगा में हुए नरसंघार के बाद बुद्ध धर्म अपनाया और इसकी स्थापना की और उनके विचार संसार के कोने कोने तक फैलाये जाने का निश्चय किया।